एक दौर था जब छत्तीसगढ़ में रेडियो से यह गीत बजता था तो लोग झूम उठते थे और बरबस इस गीत को गुनगुनाने लगते थे। छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आरंभिक दौर में ददरिया, करमा और सुवा गीत जैसे पारंपरिक लोक छंदों के बीच अपनी भाषा में भारत वंदना गीत सुनकर आह्लादित होना छत्तीसगढि़यों के लिए गर्व की बात थी।
इस लोकप्रिय और कालजयी गीत के गायक प्रीतम साहू बताते हैं कि वे पहले आर्केस्ट्रा में हिन्दी फिल्मी गीत गाते थे। उनकी आवाज से प्रभावित होकर सोनहा बिहान के स्वप्नदृष्टा दाउ महासिंग चंद्राकर नें छत्तीसगढ़ी लोक गीत गाने के लिए प्रेरित किया। दाउ महासिंग चंद्राकर नें उन्हें गीतों में पारंगत किया साथ ही तबला एवं हारमोनियम वादन भी सिखाया। प्रीतम साहू आज भी दाउ जी को अपना गुरू मानते हैं एवं दाउ जी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते रहते हैं।
धमतरी के पास स्थित गांव बलिहारा बोड़ा से पांचवी पास कर सन् 1962 में प्रीतम साहू दुर्ग आ गए। नेशनल हाई स्कूल दुर्ग में आगे की पढ़ाई शुरू की वहां से मैट्रिक किया फिर बैंक में नौकरी करने लगे। उम्र रही होगी यही कोई 17-18 साल की, वे आर्केस्ट्रा के दीवाने थे। जहां भी आर्केस्ट्रा होता वे सायकल चलाते पहुच जाते और देर रात तक पूरा कार्यक्रम देखते। सुबह आकर स्वयं गुनगुनाते। वे बताते हैं तब मैं कुलेश्वर ताम्रकार के घर के पास ही रहता था, जब भी फुरसद मिलती, हम दोनों हिन्दी फिल्मी गानों को गाया करते। संगीत की लगन के कारण बाद में वे रामायण गायन के आयोजनों में जाने लगे, जहां उन्हें कोरस गायन का ही अवसर मिल पाता था किन्तु वे उसी में संतुष्ट रहते थे।
प्रीतम बताते हैं कि बात सन् 1969-70 की है, एक दिन ऐसे ही किसी रामायण गायन के कार्यक्रम में कोरस में गाते हुए उन्होंनें लम्बा अलाप लिया। बाहर सड़क से गुजरते हुए उनके साथ पढ़ा एक मित्र सईद कुरैशी सुना और ठिठक गया। रामायण खत्म होने पर गायक-वादक जब बाहर निकले तब कुरैशी नें कुलेश्वर से पूछा कि फलां गाने में आलाप कौन लिया था। उसने प्रीतम का नाम बताया, उसी समय कुरैशी मुझे अपने उस्ताद के पास ले गया। उसके उस्ताद आर्केस्ट्रा चलाते थे। उसने पांच-सात फिल्मी गीत गाने के लिए कहा, उन्हें प्रीतम की आवाज बहुत पसंद आई। उस्ताद नें कहा कि इसकी आवाज थोड़ी गंभीर किस्म की है इसे महेन्द्र कपूर के गीत गवाओ। उसी दिन से प्रीतम आर्केस्ट्रा में हमराज के महशूर गीतों सहित महेन्द्र कपूर के लगभग सभी गीत गाने लगे।
दाउ महासिंग चंद्राकर नें जब सोनहा बिहान की परिकल्ना को साकार किया तब प्रीतम नें विशाल जन समूह के समक्ष मुकुंद कौशल के लिखे शीर्षक गीत किरन-किरन के चरन पखारंव, आरती उतारवं वो… गाकर अपने सुमधुर आवाज से जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रीतम नें सोनहा बिहान के मुख्य गायक के रूप में कई गीत गाये, वे बताते हैं कि उस समय केदार यादव वादन पक्ष की ओर ज्यादा केन्द्रित रहते थे। बाद में केदार यादव नें अपने स्वयं की संस्था नवा बिहान बना लिया, प्रीतम नें भी कालांतर में भुंइया के भगवान के नाम से सांस्कृतिक संस्था बनाया।
प्रीतम साहू के लोकप्रिय गीतों में ‘चल भेलई जातेन ना, रोजी राटी कमाए बर हम भेलई जातेन ना’ एवं पुष्प लता कौशिक के साथ गाए गीत ‘गोड़ म रईपुर शहर के बिछिया..’ आदि महत्पवूर्ण हैं। प्रीतम साहू नें पुष्प लता कौशिक, केदार यादव, कुलेश्वर ताम्रकार, मिथलेश साहू, भीखम धरमाकर, जयंती यादव, लता खपर्डे, शशि गौतम, साधना यादव सहित ममता चंद्राकर के साथ कई मशहूर और लोकप्रिय गीत गाए हैं।
– संजीव तिवारी
(यह लेख हम आपको हमारे मीडिया पार्टनर दिलीप कुमार के लोकप्रिय यू ट्यूब चैनल मोर मितान से साभार प्रस्तुत कर रहे हैं, दिलीप कुमार और प्रीतम साहू के गोठ बात आप छत्तीसगढ़ी में नीचे दिए गए वीडियो में देख-सुन सकते हैं)